Tuesday 18 December 2012

भैंस सुनती बाँसुरी





बुर्ज ऊपर,
बहुत ऊपर
और चढ़ना भी जरूरी.

सीढ़ियाँ मलबा,
बगल
घाटी पड़ी
रस्सियाँ
टूटी हुई
मुश्किल बड़ी
लौह से संकल्प पल- पल
हो रही बट्टी कपूरी.

कौन खोजे हल,
छिड़ीं हैं
गर्म बहसें
भैंस सुनती
बाँसुरी
रोयें? हँसें?
कुछ अपाहिज जन्म से
कर रहे बातें खजूरी.

- शशिकात गीते

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